Aditya Jain
3 min readApr 2, 2021

चैत्र, कृष्णा पक्ष ,पंचमी
विक्रम समवत 2078
सांय 7:18

अनुकृति उपाध्याय का पहला लघु उपन्यास “नीना आंटी” कुछ वक़्त पहले ही ख़त्म हुआ | बहुत दिनों बाद हिंदी का कोई उपन्यास पढ़ा तो उसकी ख़ुशी एक तरफ है और साथ ही में इतनी खूबसूरत एक कहानी का हिस्सा बनने की ख़ुशी एक तरफ | नीना आंटी हम सबके घर की कहानी है, एक ऐसी कहानी जो हम सब घर में कोई शादी होते वक़्त अपने चचेरे — ममेरे भाई बहनो के साथ जीते है | इस कहानी का हर एक पात्र हर एक परिस्थिति कहीं न कहीं कभी न कभी हमने देखा है महसूस किया है| इतनी खूबसूरती से लिखी गयी “नीना आंटी” के ये किस्से ऐसा लगता है मानो मेरी अपनी मौसी के किस्से हो जो माँ ने बचपन में हमें तब सुनाये थे जब मैं और मेरी बहिन हट करते थे की आपके बचपन के किस्से सुनने है |

जैसा मैं पहले बता रहा था की बहुत वक़्त बाद कोई हिंदी उपन्यास पढ़ रहा था और सच कहूंगा की थोड़ी परेशानी हुई थी हिंदी के कुछ वाक्य समझने में कुछ शब्दार्थ जानने में, पर भाव सारे मालुम थे | यूँ अपने ही मामा के घर का किस्सा लग रहा था की सारी मौसियां आयी हुई है और बातें बता रही है | अगर लेखन के बारे में बायत की जाए तो अनुकृति जी ने बहुत ही सरल तरीके से पिरोया है कहानी को और हर किस्से में कुछ संजीदा तरीके से जीवन की एक सीख अपने पाठकों के लिए रख दी है मानो कहना चाह रही हो की आपका मन हो तो कहानी पढ़ लीजिये मन हो तो सीख ले लीजिये, आपकी ही कहानी है जैसे रखना है आपके ऊपर है|

पूरी किताब में मुझे सबसे प्यारी बात लगी जब समाज की सारी कुरीतियों और हालत को एक एक बार नकारती हुई नीना आंटी अपने जीवन की डोर खुद समभालने लगती | एक टिपण्णी जरूर की गयी है समाज की हालत परइस लघु उपन्यास में |

और नीना आंटी का वो कहना की कहानी का अंत सुखद या दुखद होना हमारे मन में होता है, कहानी का अंत निश्चित है लेकिन उसे किस नजरिये से देखना है वो एक इंसान की निजी सोच है |

नानी (माँ) का वर्णन भी एक बहुत ही प्यारे तरीके से किया गया है | सरल हिंदी और उससे भी आसान भावनाएं अगर कहीं देखें को मिली तो वो इस कहानी में थी | आखिरी पृष्ठ तक आते आते मुझे सारे के सारे किरदार अपने घर के लगने लगे और लगा की ये हम सबके ही गली मौहल्ले के तो किस्से है | किसी ने बहुत सारे किस्से लिए और बहुत ही सावधानी से एक साथ एक कहानी में पिरो दिया |
अनुकृति उपाध्याय के इस काम को बहुत ही उम्दा कहा जा सकता है | अगर आपको कहीं भी ये पुस्तक मिले तो जरूर एक बार पढ़े | और साथ ही अनुकृति जी ने जापानी सराय में बहुत से उपन्यास लिखे है तो वक़्त मिले तो उन्हें भी पढ़े |

~ आदित्य

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